Saturday, October 30, 2010

मैं एक और जीवन जीना चाहती हूँ
उन्मुक्त आसमान मैं विचरण करती,
हवाओं को चीरते हुए डाल डाल डोलती
पंख पसारे धरती को छोड़ आसमान पाना चाहती हूँ
मैं एक और जीवन जीना चाहती हूँ

खुशबू बिखेर मन को बहलाती
काँटों की शैया पर लेटी मुस्कुराती
तोड़ मुझे माली से दूर
किसी के आँगन को सवारना चाहती हूँ
मैं एक और जीवन जीना चाहती हूँ

सीप की बंद पलकों मैं समाई
अनगिनत लहरों के बीच मैं लहराई
उन पलकों से बहार निकल
किसी के गले का हार बनाना चाहती हूँ
मैं एक और जीवन जीना चाहती हूँ

हर रात को रोशन करती
अदभुत से अनुभूति लोगों को कराती
एक चाँद के इर्द-गिर्द चमकना चाहती हूँ
मैं एक और जीवन जीना चाहती हूँ ।


- वाणी मेहता