Friday, September 20, 2013

ek prayaas

हर रात के बाद एक नई सुबह आती है ,
मेरे जीवन में उम्मीदो की रौशनी वो लाती है।
कहने  को तो कुछ भी नहीं मेरे पास,
पर फिर भी जीवन जीने की मुझे है आस।

तकदीर के आगे किसी की नहीं चलती
पर बिना मेहनत  क्या जीवन की गाड़ी  चलती?
मैं  भी मेहनत  करता हूँ ,
रोज़ दर दर भटकता हूँ ,
गिरता हूँ, संभालता हूँ
तभी टकराता हूँ आप से-
महत्वाकांशी , ओजपूर्ण , गौरवमय  इंसान से
जो धिक्कारता मुझे, चला जाता मेरे पास से।
सोचा क्यों ना  बात करूँ  मैं  आज आप से

अरे बाबू  - माना  तकदीर ने मुझे दगा दिया
पर तुमने क्या भला किया ?
निगाहें चुराकर मुहँ  फेर लिया !
और मुझे लाचारी और बेबसी के अन्धकार में फिर से धकेल दिया।

यह सुनकर बाबु  सकपकाया
न जाने क्यों उसे  मेरी आँखों में विश्वास नज़र आया
अपनी अकड़  में बाबू  बोला  मुझसे  - क्या कर सकता है तू जीवन में?

यह सुनकर मैं बोला - सपने कौन नहीं देखता ?
मैं  भी कुछ बनाना चाहता हूँ
मैं  पढना चाहता हूँ, अपने सपनो को साकार करना चाहता हूँ
लाचारी और बेबसी के इस जीवन से बहार निकल,
एक आत्म निर्भर जीवन जीना चाहता हूँ।
मैं  इस देश का गौरव बनना चाहता हूँ,
मैं  अकेला हूँ, असहाय हूँ
इस संसार से अनभिज्ञ हूँ
मेरे पैरों तले ज़मीन नहीं, सर पर साया नहीं
मैं  आपका सहारा चाहता हूँ
निवेंदन करता हूँ आप से
थाम लो हाथ मेरा, दे दो सहारा मुझे
दलदल में फसाँ  हूँ, बाहर  निकालो मुझे
तड़पता हूँ, छटपटाता  हूँ , थोडा सुकूँ  दे दो मुझे
हर पल नीर बहाता  , मुस्कान दे दो मुझे
लाचारी की बेडियों में जकड़ा हूँ, आज़ाद कर दो मुझे
सपने है मेरे कुछ,  पंख दे दो उन्हें
होंसला  और विश्वास है मेरे पास, अपना साथ दे दो मुझे
मौका दो मुझे - जीने दो मुझे, जीने दो मुझे
एक आत्मनिर्भर जीवन, जीने दो मुझे
सुनकर हैरान था बाबू ,
बोला मुझसे - होंसला और साहस  है तुझ में
जीने की आस है तुझे

हम सभी आत्म-निर्भर है , इन बच्चों  के अधूरे सपनो को पूरा कर सकते है।
तो क्यों न हम सब हाथ मिलाये
विकासशील देश को विकसित  बनाये
आइये हम सब आगे बढे
समाज की निम्न रेखा से इन लोगों को ऊपर ऊठाएं

और  इन्हे आत्म निर्भर बनाये। 

Ganesh utsav (2009)

साल २००९ बड़ा बुरा वक़्त है लाया
रिसेशन की स्थिति में स्वाइन फ्लू ने अपना पैर है जमाया
रोज़ देर तक ऑफिस में बैठा करते थे
ऐसे में स्वाइन फ्लू ने वर्क फ्रॉम होम का सपना दिखाया
वक़्त आया है गणेश उत्सव का
लोगों के आनद और हर्षोल्लास  का।

महामारियों से बचाना चाहता हूँ
मुँह  पे पट्टा  लगाकर पूजा कर रहा हूँ,
स्वाइन फ्लू से बचने के लिए
इन्टरनेट पे गणेशजी के दर्शन कर रहा हूँ।

बप्पा यह सब देख रहे थे
देखकर खुश हो रहे थे
सामने आये बप्पा मेरे , कान बड़े बड़े
मोदक खाकर पैर हिला रहे थे
बोले - मांग क्या मांगता है,
ऐसा वक़्त बार बार नहीं आता है। 

बप्पा - सुनो दास्ताँ मेरी, करो अधूरी इच्छा पूरी

पांच साल से नौकरी कर रहा हूँ,
एक ही प्रोजेक्ट में अपने को घिस रहा हूँ।
साल २ ० ० ९ मेरे प्रमोशन का साल है,
ऐसे में रिसेशन से सबका बुरा हाल है। 
प्रमोशन के बहाने एक लड़की पटाता,
साल २ ० ० ९ में झट पट शादी कर लेता। 
चलो प्रमोशन नहीं आया, जाने दो
इन्क्रीमेंट के जरिये, लक्ष्मी को घर आने दो।
इन्क्रीमेंट क्या खाक आएगा, स्वाइन फ्लू आ गया,
बची कुची पूँजी अपने साथ बहा ले गया।

ऐसे बुरे वक़्त में हमें  मोदक का स्वाद चखा दो
इन सब मुसीबतों से मुक्त करा दो। 

गणेश जी बोले- बेटा साल २००९ सब पर है भारी
सूर्यग्रहण ने चारों तरफ महामारी फैलाई।
तुम्हारी व्यथा सुन जवाब तुम्हारी भाषा में देता हूँ
खुद को मैनेज और डेवलपर दोनों समझ लेता हूँ।
कोड के साथ डिफेक्ट तुम डिलीवर कर देते हो,
इस तरह अपना प्रमोशन तुम खुद ही ब्लाक कर लेते हो।
मुफ्त में पैसे क्यों लुटा रहे हो,
बेवजह मॉल में जाकर बीमारियाँ फैला रहे हो।
बोनस अगर इतना है ज़रूरी ,
तो वर देता हूँ, तुम्हे मिले दो बीवी
महामारी से ज्यादा, बीवी मच देगी तबाही

सुनकर होश उड़  गए मेरे
न करो बाप्पा ऐसा तुम मेरे ,
समझ में आ गया मुझे
धैर्य  ही समस्या का हल है
यह सब मेरी ही करनी का फल है,

बाप्पा तुम ग्रेट हो
तुम्हारी हर तरफ जय जय हो।